एनआईए की विश्वसनीयता पर पूछे गए सवाल के जवाब में आतंकवाद पर लिखने वाले जाने-माने लेखक और इंस्टिट्यूट फोर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के निदेशक
रहे अजय साहनी कहते हैं, ''हिन्दुत्व के मामलों में एनआईए की भूमिका अच्छी
नहीं रही है. हम ये नहीं कह सकते कि वो निर्दोष है या दोषी है. लेकिन एक चीज़ बिल्कुल साफ़ नज़र आती है कि या तो एनआईए कांग्रेस सरकार में राजनीतिक
दबाव के कारण झूठ बोल रही थी या एनडीए सरकार में झूठ बोल रही है. पहले
एनआईए कह रही थी कि ये लोग न सिर्फ़ मुज़रिम हैं बल्कि ये फांसी के लायक
मुज़रिम हैं. इस सरकार में ये कहने लगे कि उनके पास कोई सबूत ही नहीं हैं.''
साहनी कहते हैं, ''यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इस एजेंसी का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है लेकिन कौन कर रहा है इस पर टिप्प्णी नहीं कर सकता. ये तो स्पष्ट है कि एनआईए या तो पहले झूठ बोल रही थी या अब झूठ बोल रही है. एनआईए ने कांग्रेस की सरकार में कहा था कि इन लोगों को फांसी दी जाए और इनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं. जब सरकार बदली तो इनके सारे सबूत ग़ायब हो गए. इस वक़्त मुस्लिम अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दुश्मनी बढ़ गई है. मैं एनआईए एक्ट से ही सहमत नहीं हूं. कोई एक ऐसी संस्था खड़ी कर दे जिस पर संवैधानिक प्रश्न खड़े होते हैं, उससे कैसे सहमत हुआ जा सकता है?''
साहनी मानते हैं कि अभी हर संस्थान का ग़लत इस्तेमाल हो रहा है. वो कहते हैं, ''आप एक संस्था को इतनी शक्ति दे रहे हैं और उससे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि दुरुपयोग नहीं होगा. मैं मानता हूं कि एनआईए को जितनी ताक़त दी गई है वो ठीक नहीं है. एनआईए की शुरुआत कांग्रेस ने की और आज भी उसे अपनी ग़लती का अहसास नहीं हो रहा है. ऐसी संस्थाओं और क़ानून के ज़रिए सरकार का विरोध करने वालों को फँसाया जा रहा है. मामला वर्षों तक लटका रहता है और उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया जाता है.''
कई अहम मामलों में स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्युटर रहे उज्ज्वल निकम नहीं मानते हैं कि राजनीतिक दबाव में किसी को फंसाया जाता है.
वो कहते हैं, ''कांग्रेस हो या बीजेपी सब सरकार में इन मामलों की जांच को लेकर प्रॉपेगैंडा चलता है. मैं स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्युटर के तौर पर पिछले 30-40 सालों से काम कर रहा हूं और कभी ये नहीं देखा कि कोई सरकार निर्दोष व्यक्ति को अपने स्वार्थ के लिए फंसा रही है. हां, ये हो सकता है कि कम सबूत के बावजूद किसी पर ऐक्शन लिया जाता है तो विपक्ष आरोप लगाता है कि बदले की भावना से सरकार काम कर रही है. समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगाँव धमाके के बारे में मुझे बहुत पता नहीं है.''
संसद में एनआईए संशोधन बिल 2019 पास होने के बाद एनआईए को और अधिकार मिल गए हैं. उज्ज्वल निकम इसे सही मानते हैं और कहते हैं कि भारत पर आतंकवादी हमले का ख़तरा बरक़रार है इसलिए यह ज़रूरी था. वहीं अजय साहनी कहते हैं कि लॉ एंड ऑर्डर राज्यों का विषय है और एनआईए उसमें दख़लअंदाज़ी कर रही है. ज़ाहिर है इसी दख़लअंदाज़ी की बात मोदी साल 2011 में कर रहे थे.
एनआईए संशोधन बिल 2019 के ज़रिए तीन अहम बदलाव किए गए हैं.
साहनी कहते हैं, ''यह बिल्कुल स्पष्ट है कि इस एजेंसी का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है लेकिन कौन कर रहा है इस पर टिप्प्णी नहीं कर सकता. ये तो स्पष्ट है कि एनआईए या तो पहले झूठ बोल रही थी या अब झूठ बोल रही है. एनआईए ने कांग्रेस की सरकार में कहा था कि इन लोगों को फांसी दी जाए और इनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं. जब सरकार बदली तो इनके सारे सबूत ग़ायब हो गए. इस वक़्त मुस्लिम अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दुश्मनी बढ़ गई है. मैं एनआईए एक्ट से ही सहमत नहीं हूं. कोई एक ऐसी संस्था खड़ी कर दे जिस पर संवैधानिक प्रश्न खड़े होते हैं, उससे कैसे सहमत हुआ जा सकता है?''
साहनी मानते हैं कि अभी हर संस्थान का ग़लत इस्तेमाल हो रहा है. वो कहते हैं, ''आप एक संस्था को इतनी शक्ति दे रहे हैं और उससे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि दुरुपयोग नहीं होगा. मैं मानता हूं कि एनआईए को जितनी ताक़त दी गई है वो ठीक नहीं है. एनआईए की शुरुआत कांग्रेस ने की और आज भी उसे अपनी ग़लती का अहसास नहीं हो रहा है. ऐसी संस्थाओं और क़ानून के ज़रिए सरकार का विरोध करने वालों को फँसाया जा रहा है. मामला वर्षों तक लटका रहता है और उन्हें पूरी तरह से तोड़ दिया जाता है.''
कई अहम मामलों में स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्युटर रहे उज्ज्वल निकम नहीं मानते हैं कि राजनीतिक दबाव में किसी को फंसाया जाता है.
वो कहते हैं, ''कांग्रेस हो या बीजेपी सब सरकार में इन मामलों की जांच को लेकर प्रॉपेगैंडा चलता है. मैं स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्युटर के तौर पर पिछले 30-40 सालों से काम कर रहा हूं और कभी ये नहीं देखा कि कोई सरकार निर्दोष व्यक्ति को अपने स्वार्थ के लिए फंसा रही है. हां, ये हो सकता है कि कम सबूत के बावजूद किसी पर ऐक्शन लिया जाता है तो विपक्ष आरोप लगाता है कि बदले की भावना से सरकार काम कर रही है. समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगाँव धमाके के बारे में मुझे बहुत पता नहीं है.''
संसद में एनआईए संशोधन बिल 2019 पास होने के बाद एनआईए को और अधिकार मिल गए हैं. उज्ज्वल निकम इसे सही मानते हैं और कहते हैं कि भारत पर आतंकवादी हमले का ख़तरा बरक़रार है इसलिए यह ज़रूरी था. वहीं अजय साहनी कहते हैं कि लॉ एंड ऑर्डर राज्यों का विषय है और एनआईए उसमें दख़लअंदाज़ी कर रही है. ज़ाहिर है इसी दख़लअंदाज़ी की बात मोदी साल 2011 में कर रहे थे.
एनआईए संशोधन बिल 2019 के ज़रिए तीन अहम बदलाव किए गए हैं.
- अब एनआईए एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 और यूएपीए एक्ट 1967 के तहत होने वाले अपराधों की जांच कर सकती है. इसके अलावा मानव तस्करी, जाली नोट, प्रतिबंधित हथियारों के निर्माण और बिक्री, साइबर-आतंकवाद और एक्सप्लोसिव सबस्टैंस एक्ट, 1908 के तहत आने वाले अपराधों की जांच करेगी. इसके अलावा एनआईए के अधिकारियों के पास दूसरे पुलिस अधिकारियों के समान अधिकार होंगे और यह पूरे देश में लागू होगा.
- इस बिल के पास होने से एनआईए को यह ताक़त भी मिल गई है कि वो विदेशों में जाकर भी भारतीयों के ख़िलाफ़ हुए अपराधों की जांच कर सकती है.
- इस बिल के पास होने के बाद सेशन कोर्ट को एनआईए का स्पेशल कोर्ट का दर्जा
दिया जा सकता है. इनमें जजों की नियुक्ति उस राज्य के हाई कोर्ट के मुख्य
न्यायधीश की सिफ़ारिश पर केंद्र सरकार करेगी. हैदराबाद से लोकसभा सांसद और क़ानून की अच्छी समझ रखने वाले असदउद्दीन
ओवैसी को लगता है कि एनआईए एक ऐसी एजेंसी बन गई है जिसका इस्तेमाल सरकार राजनीतिक रूप से आराम से करती है.
वो कहते हैं, ''किसी भी लोकतंत्र में डायरेक्टर ऑफ पब्लिक प्रॉसिक्युटर बिल्कुल स्वतंत्र होता है लेकिन इसमें इन्होंने एक कर दिया है. इससे इंसाफ़ नहीं बल्कि नाइंसाफ़ी सुनिश्चित होगी.''
ओवैसी कहते हैं, ''मक्का मस्जिद धमाके में एक ऐसे प्रॉसिक्युटर को रखा गया जिसने अपनी ज़िंदगी में क्रिमिनल केस तो छोड़िए एक्सप्लोसिव सब्सटैंस एक्ट का केस भी नहीं लड़ा होगा. कोर्ट ने सारे अभियुक्तों को बरी कर दिया और फिर आप अपील भी नहीं करते. दूसरा समझौता एक्सप्रेस धमाके में भी सारे अभियुक्त बरी हो गए और फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील नहीं की गई. भीमा कोरेगाँव मामले में पूना पुलिस ने कहा था कि प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश रची जा रही थी. इसके बाद लोगों ने अदालत के दस्तावेज देखे तो इस बात का कहीं ज़िक्र तक नहीं था. इस मामले के सारे अभियुक्तों पर यूएपीए लगा दिया गया है.''
ओवैसी कहते हैं कि सरकारों के बदलने से इंसाफ़ के हक़ को ख़त्म नहीं किया जा सकता.
वो कहते हैं, ''आप आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई अपनी विचारधारा के हिसाब से नहीं लड़ सकते. मक्का मस्जिद, अजमेर और समझौता एक्सप्रेस में जो मारे गए, हम उनके परिवार वालों को क्या कहेंगे? क्या आतंकवाद के ख़िलाफ़ हमारी लड़ाई सिलेक्टिव लड़ाई है? मालेगाँव में जिन मुस्लिम लड़कों को सालों तक जेल में बिना गुनाह के बंद रखा गया उसकी भरपाई कौन करेगा? इस मामले में साध्वी प्रज्ञा पर आज भी केस चल रहा है. जिसके ऊपर आतंकवाद के आरोप हैं उसे आप चुनावी टिकट दे रहे हैं और जीत भी गईं. जिस बहादुर हेमंत करकरे ने पाकिस्तानी आतंकवादियों से लड़ते हुए अपनी जान की क़ुर्बानी दे दी उसका साध्वी प्रज्ञा मज़ाक उड़ाती हैं.''
ओवैसी कहते हैं कि पहले एनआई का कोई ऑफिसर ग़लत करता था तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाती थी लेकिन चिदंबरम ने इसे भी ख़त्म दिया था. वो कहते हैं इस संशोधन के बाद अब राज्य की सरकारों से अनुमति लेने की भी ज़रूरत नहीं रह गई है.
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