1954 में लोहिया की प्रेरणा से गोवा विमोचन सहायक समिति बनी, जिसने सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा के आधार पर आंदोलन चलाया. महाराष्ट्र और गुजरात में आचार्य नरेंद्र देव की प् रजा सोशलिस्ट पार्टी के सदस्यों ने भी उनका भरपूर साथ दिया. 'लोहिया एक जीवनी' बताती है कि गोवा छोड़ने से पहले डॉक्टर साहब ने आह्वान किया कि गोवा के लोग अपना संघर्ष जारी र खें. लोहिया ने तीन महीने बाद गोवा लौटने का वादा किया लेकि न दिसंबर 1946 आते-आते भारत के दूसरे हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़क उठी और लोहिया गोवा नहीं जा सके क्योंकि वे गांधी के साथ हिंसा की आग बुझाने में लगे थे. किताब के मुताबिक, "लोहिया अपने वादे को न हीं भूले, वे दोबारा गोवा गए लेकिन उन्हें रेलवे स्टेशन पर ही गिरफ़्तार कर लिया गया. इस बार भी गांधी लोहिया की गिरफ़्तारी पर लगातार बोलते रहे. दस दिन तक जेल में रखे जाने के बाद लोहि या को दोबारा गोवा की सीमा से बाहर ले जाकर छोड़ दिया गया." ग़ौर करने की बात ये भी है कि गोवा की आज़ादी की लड़ाई में लोहिया की भूमिका को सिर्फ़ गांधी का समर्थन मिला, कांग्रेस पार्टी के बड़े न